औरंगाबाद ।औरंगाबाद के निवर्तमान सांसद सुशील कुमार सिंह 2024 के लोकसभा चुनाव में भले ही हार गए हों लेकिन उनकी राजनीति को करीब से समझने वाले यह भली भांति जानते हैं कि सुशील कुमार सिंह राजनीतिक मुश्किलों से उबरने का तरीका बेहतर तरीके से जानते हैं और वे एक बार फिर पूरी मजबूती से राजनीतिक तौर पर सक्रिय एवं प्रभावी बने रहते हैं ।
अपने लगभग तीन दशक लंबे राजनीतिक कैरियर में कई बार उन्हें बड़ी राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा तथा उनके राजनीतिक कैरियर के अंत तक की भविष्यवाणियां की जाने लगी लेकिन सुशील कुमार ने सिंह ने सभी अटकलें को विराम देते हुए मगध व औरंगाबाद की राजनीति में ऐसा मुकाम बनाया है जो उनके पराजय के बाद भी उन्हें दक्षिण बिहार की राजनीति के केंद्र में रखे हुए हैं।
सुशील कुमार सिंह को वैसे तो विरासत में राजनीति मिली। उनके पिता राम नरेश सिंह औरंगाबाद के स्थापित राजनीतिज्ञ थे। वे दो बार तत्कालीन राजनीतिक लहर के विपरीत औरंगाबाद विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गये थे। बाद में उन्होंने 1989 में तत्कालीन मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिंह की पुत्रवधू श्यामा सिंह को तथा 91 में पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिंह को पराजित कर लोकसभा में औरंगाबाद का प्रतिनिधित्व किया था।
सुशील कुमार सिंह ने 1995 के विधानसभा चुनाव से अपनी राजनीति की शुरुआत की जब समता पार्टी के टिकट पर उन्होंने औरंगाबाद विधानसभा क्षेत्र का चुनाव लड़ा था। अपने पिता की बीमारी और समता पार्टी के सांगठनिक आधार की कमी की वजह से सुशील कुमार सिंह यह चुनाव हार गए।
उस वक्त उनका राजनीतिक कैरियर अंधकार में दिखने लगा था। सुशील कुमार सिंह के पूरे राजनीतिक कैरियर को कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रेमेंद्र कुमार मिश्रा बताते हैं कि इसके अगले साल ही लोकसभा चुनाव में सुशील कुमार सिंह को पार्टी ने औरंगाबाद से अपना उम्मीदवार बनाया और उन्होंने इस चुनाव को पूरी क्षमता से लड़ा। नतीजा यह रहा कि सत्येंद्र नारायण सिंह जैसे दिग्गज की मौजूदगी में भी सुशील कुमार सिंह ने सम्मानजनक मत प्राप्त कर तीसरा स्थान प्राप्त किया और यह चुनाव साबित कर गया कि आने वाले समय में सुशील कुमार सिंह औरंगाबाद की राजनीति में बेहद महत्वपूर्ण स्तंभ बनने वाल वाले हैं।
हुआ भी ऐसा और 1998 के चुनाव में सुशील कुमार सिंह ने औरंगाबाद लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर पहली बार संसद में प्रवेश किया। लेकिन उनकी राह आसान नहीं रही और मध्यावधि चुनाव में राजद कांग्रेस गठबंधन की ओर से प्रत्याशी श्यामा सिंह से उन्हें 1999 के लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। सुशील कुमार सिंह ने राजनीतिक कुशलता एवं चतुराई दिखाते हुए संसदीय राजनीति से खुद को अलग किया और वर्ष 2000 में होने वाले विधानसभा चुनाव लड़कर रफीगंज से विधायक बने। इस बीच 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में भी उन्हें निखिल कुमार के हाथों पराजित होना पड़ा लेकिन उनकी विधायकी कायम रही। 2005 में उन्होंने नवीनगर से चुनाव लड़ा परंतु उन्हें हार का सामना करना पड़ा और एक बार फिर उनके राजनीतिक कैरियर पर सवाल उठने लगे।
इस स्थिति को भी सुशील कुमार सिंह ने बेहद कुशलता से संभाला और चार साल बाद वर्ष 2009 में उन्होंने निखिल कुमार को पराजित कर एक बार फिर लोकसभा सीट जीत ली। इसके बाद 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने अपने शानदार प्रदर्शन को दोहराते हुए लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की।
वरिष्ठ पत्रकार कमल किशोर बताते हैं कि 2024 की हार के बावजूद सुशील कुमार सिंह दक्षिण बिहार की राजनीति के एक प्रमुख ध्रुव हैं क्योंकि इनका सुदीर्घ अनुभव, राजनीतिक संपर्क एवं जनता से इतना जुड़ाव इतना ज्यादा है कि उनकी भूमिका लगातार बनी रहेगी और यह राजनीति के प्रमुख ध्रुव बने रहेंगे। सुशील कुमार सिंह के साथ एक अच्छी बात यह भी है कि उनकी आयु अभी कम है और उनके पास अपनी हार को जीत में बदलने के कई अवसर आने वाले चुनाव में प्राप्त होते रहेंगे। सुशील सिंह के विरोधी भी इस बात से सहमत होंगे कि व्यापक व्यक्तिगत जनाधार वाले सुशील सिंह कभी किसी चुनाव से कम बैक करने में सक्षम हैं और केंद्र एवं राज्य की राजनीति में अहम भूमिका निभाते रहेंगे ।