ATHNEWS 11 :-+2 उच्च विद्यालय चौखंडी पथ में बुधवार को प्रधानाचार्य उमेश कुमार सिंह के नेतृत्व में गांधी जयंती एवं लाल बहादुर शास्त्री जी के जयंती मनाया गया इस कार्यक्रम में अनेकों प्रकार के कार्यक्रम कराया गया जिसमे स्वच्छता अभियान एवं कला प्रदर्शन एवं नाटक कराया था इस कार्यक्रम में जिला शिक्षा पदाधिकारी जेoईo पवन कुमार एवं दीपक कुमार के द्वारा विद्यालय में बना नए शौचालय का उद्घाटन भी किया गया इस कार्यक्रम में प्रधानाचार्य उमेश कुमार सिंह ने छात्रों को संबोधित करते हुए बताया कि मोहनदास करमचंद गांधी जिन्हें हम प्यार से बापू भी कहते हैं इनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 ई में हुआ था और इनका निधन 30 जनवरी 1948 में हुआ इसी के बीच बताया कि भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की एक प्रमुख राजनीतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे वह सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार करने के समर्थक अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत सहित पूरे विश्व में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें संसार में साधारण जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है। संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा ‘महान आत्मा’ एक सम्मान सूचक शब्द है। गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले 1915 में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था। एक अन्य मत के अनुसार स्वामी श्रद्धानन्द ने 1915 मे महात्मा की उपाधि दी थी। तीसरा मत ये है कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने 12 अप्रैल 1919 को अपने एक लेख मे उन्हें महात्मा कहकर सम्बोधित किया था। उन्हें बापू (गुजराती भाषा में बाबू अर्थात् पिता) के नाम से भी स्मरण किया जाता है।
एक मत के अनुसार गांधीजी को बापू सम्बोधित करने वाले प्रथम व्यक्ति उनके साबरमती आश्रम के शिष्य थे सुभाष चन्द्र बोस ने 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं। प्रति वर्ष 2 अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयन्ती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है। फिर उसके बाद लाल बहादुर शास्त्री जी के जयंती पर संबोधित करते हुए बताएं कि लालबहादुर शास्त्री का जन्म 1904 में मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) में एक कायस्थ परिवार में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहाँ हुआ था।[2] उनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे अत: सब उन्हें मुंशीजी ही कहते थे। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में लिपिक (क्लर्क) की नौकरी कर ली थी। लालबहादुर की माँ का नाम रामदुलारी था। परिवार में सबसे छोटे होने के कारण बालक लालबहादुर को परिवार वाले प्यार में नन्हें कहकर ही बुलाया करते थे। जब नन्हें अठारह महीने का हुआ दुर्भाग्य से पिता का निधन हो गया। उनकी माँ रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्ज़ापुर चली गयीं। कुछ समय बाद उसके नाना भी नहीं रहे। बिना पिता के बालक नन्हें की परवरिश करने में उसके मौसा रघुनाथ प्रसाद ने उसकी माँ का बहुत सहयोग किया। ननिहाल में रहते हुए उसने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलने के बाद उन्होंने जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द ‘श्रीवास्तव’ हमेशा हमेशा के लिये हटा दिया और अपने नाम के आगे ‘शास्त्री’ लगा लिया। इसके पश्चात् शास्त्री शब्द लालबहादुर के नाम का पर्याय ही बन गया।1928 में उनका विवाह मिर्जापुर निवासी गणेशप्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ। इस कार्यक्रम में एनसीसी कैडेट सार्जेंट अनुभव विश्वकर्मा ने थल सैनिक कैंप दिल्ली में बहुत अच्छा प्रदर्शन रहा। दिल्ली से लौटने के क्रम में प्रधानाचार्य उमेश कुमार सिंह के द्वारा अंग वस्त्र एवं डायरी कलम देकर उनका अभिवादन किया उसके बाद एनसीसी पदाधिकारी फर्स्ट ऑप्शन चंदन कुमार को भी सम्मानित किए। इस कार्यक्रम में अशोक कुमार सिंह हिमांशु त्रिपाठी राजेश कुमार नारायण रामस्वरूप सिंह मनीष कुमार सिंह चंपा कुमारी सिंधु कुमारी श्वेता कुमारी जेब परवीन राजेश कुमार जितेंद्र कुमार सिंह धनंजय कुमार सिंह वंदना कुमारी लिपिक बलदाऊ सिंह एवं पूरे विद्यालय परिवार सहयोग रहा।