सुजीत कुमार यादव की रिपोर्ट।
कलवारी। सन्त तुलसीदास कृत रामचरितमानस समूचे मानव समाज के लिए आचार संहिता के समान है। इस ग्रंथ से मर्यादा का पालन करने की सीख मिलती है। जो लोग मानस मे बताए गये मार्ग पर चलते है। उन्हें संकटो का सामना नहीं करना पड़ता है। मानस मे जड़ चेतन सबमे भगवान का वास माना गया है। मानस की शुरुआत मे तुलसीदास जी ने लिखा है कि सीय राम मय सब जग जानी, करहु प्रनाम जोरि युग पानी। मानस का श्रवण और मनन मानव समाज के लिए बहुत उपयोगी है।
यह सदविचार अवध धाम से पधारेे कथा व्यास पं प्रदीप शास्त्री जी ने व्यक्त किया। वे कुदरहा विकास क्षेत्र के श्री ब्रम्हदेव बाबा मन्दिर कोरमा परिसर में आयोजित नौचण्डी महायज्ञ के अवसर पर नौ दिवसीय श्रीराम कथा के सातवें दिन उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रवचन सत्र में श्री राम विवाह प्रसंग पर अपना विचार ब्यक्त किया।
उन्होनें बिबाह की कथा को बिस्तार देते हुए कहा कि भगवान मे बचपन से त्याग की भावना थी। उन्होंने संतो के यज्ञ की रक्षा के लिए द्वार पाल बनकर यज्ञ की रक्षा किया। यज्ञ से विश्व का कल्याण होता है। यज्ञादि कर्म से जल की बृष्टि होती है। भगवान ने जनकपुर जाकर अहंकार रुपी शिव धनुष का खंडन कर जनक जी के संताप को दूर कर सीता जी से पाणिग्रहण संस्कार का निर्वहन किया। और आधार शिला रुपी अहिल्या का उद्धार कर भगवान ने यह संदेश दिया कि जिसे जगत के लोगो ने ठुकराया था उसे जगत पिता ने अपनाया। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भौतिक सुख सुबिधाओं को छोड़कर मर्यादा का पालन किया। अयोध्या के महल में जब से राम जी ब्याह कर आए हैं पूरे अयोध्या में मंगल गीत गाया जा रहा है।
कथा में मुख्य रूप से यजमान राजेन्द्र ओझा, श्यामलाल मौर्य, राजकुमार चौरसिया, अद्या प्रसाद ओझा यज्ञाचार्य ओमप्रकाश त्रिपाठी के अलावा प्रधान धर्मेन्द्र पटेल, कृपा शंकर ओझा, श्रीराम ओझा, त्रिलोकी ओझा, हीरालाल ओझा, श्रीपति ओझा, राम देव चौधरी, हरिश्चंद्र राजभर, राकेश कश्यप, राम नरेश राजभर, राम सजीवन राजभर, रमाकान्त शर्मा, चन्द्रेश चौरसिया, अखिलेश कुमार सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।