ईदगाहों पर नमाज पढ़ एक दूसरे को गले लगाकर दिया एकता का संदेश।

 

संजय कुमार चौरसिया ब्युरो रिपोर्ट बस्ती।

लालगंज – लालगंज थाना क्षेत्र के विभिन्न ईदगाहों और मस्जिदों में ईद उल फित्र की नमाज शांतिपूर्वक तरीके से संपन्न की गई।
ईद का त्योहार समाज में एकता, सद्भावना और धार्मिकता के महत्व को बढ़ावा देता है। इसके माध्यम से मानवता के मूल्यों की प्रतिष्ठा की जाती है और सभी के बीच एक अद्वितीय बंधन का उत्सव मनाया जाता है।
लोग एक दूसरे से गले मिलकर ईद उल फित्र की बधाइयां दी। लोग दिन भर एक दूसरे के घर जाकर सेवईयां, खीर या शीर कोरमा खाए और ईद की मुबारकबाद भी दिया।
कुदरहा विकास क्षेत्र के जिभियाँव, बैडारी, थन्हवा मुड़ियारी सहित क्षेत्र के विभिन्न ईदगाहों और मस्जिदों में गुरुवार सुबह 8 बजे बड़े ही अकीदत और अदबो एहतराम के साथ ईद उल फितर की नमाज अदा की गई। इस्लाम धर्म को मानने वाले अपने-अपने ईदगाहों और मस्जिदों में पहुंचकर ईद उल फितर की नमाज अदा की। देश की तरक्की और देश में अमन कायम रखने के लिए लोगों ने दुआएं की। प्रत्येक ईदगाहों पर पुलिस प्रशासन मुस्तैद दिखा।जिभियांव ईदगाह में लोगों को खेताब करते हुए मौलाना गुलाम नबी ने कहा कि ईद के माने खुशी होता है। इस त्योहार को पहली बार 02 हिजरी यानी 624 ईस्वी में मनाया गया था। कहा जाता है कि इस उत्सव की शुरुआत मक्का से मोहम्मद पैगंबर के प्रवास के बाद पवित्र शहर मदीना में हुई थी।
उस वक्त पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई में जीत हासिल की थी। इस्लामी इतिहास के अनुसार, इसी महीने में मुसलमानों ने पहला युद्ध लड़ा था जो सऊदी अरब के मदीना प्रांत के बद्र शहर में हुआ था। इसलिए इस युद्ध को जंग-ए-बद्र भी कहा जाता है।
इस युद्ध में उनके जीत की खुशी में मीठा खिलाकर सबका मुंह मीठा करवाया गया था। तब से ही इस दिन को मीठी ईद या ईद-उल-फित्र के रुप में मनाया जाता है। बद्र की लड़ाई इस्लाम की पहली जंग थी।

वहीं ईद को मनाने की दूसरी बड़ी वजह भी है और वह रमजान के पूरे महीने में रखे जाने वाले रोजा। एक महीने तक रोजा रखने और अल्लाह की इबादत पूरी होने की खुशी में भी ईद मनाई जाती है।कुरआन के अनुसार, ईद को अल्लाह की ओर से मिलने वाला ईनाम का दिन माना जाता है। इस दिन मुसलमान पूरे एक महीने के रोजे के बाद दिन के उजाले में पकवान खाते हैं और खुशियां मनाते हैं।ईद-उल-फित्र, ये त्योहार सबके साथ खुशियां मनाने का पैगाम देता है इस दिन अमीर गरीब का फासला रखे बिना सभी मुसलमान एक साथ नमाज अदा करते हैं और एक दूसरे की खुशियों में शामिल भी होते हैं।ईद-उल-फित्र, में ‘फित्र’ का मतलब होता है धर्मार्थ उपहार। इस्लाम में फित्र यानी दान देना ईद का सबसे अहम पहलू है। इस दिन नमाज से पहले सभी संपन्न मुसलमान को गरीबों को फित्र देना जरूरी है जिससे वह भी अपनी ईद मना सके और खुशियों में शामिल हो सकें।

इस दिन की शुरुआत सुबह की पहली प्रार्थना के साथ की जाती है। जिसे सलात अल-फज़्र भी कहा जाता है। इसके बाद नए कपड़ों में सजकर लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मुंह मीठा करते हैं। जहां पूरा समुदाय एक साथ ईद की नमाज अदा करता है। नमाज अदा करने के बाद एक दूसरे को ईद की बधाईयां दी जाती है।

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