महा शिव रात्रि के शुभ अवसर पर देवकुंड महोत्सव का किया गया आयोजन।

औरंगाबाद:-भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध प्रमंडल के औरंगाबाद जिले में स्थित हैं देवकुंड। महा शिव रात्रि के शुभ अवसर पर देवकुंड महोत्सव का आयोजन किया गया, जिला के प्रतिनिधि मंडल और जिला प्रशासन के द्वारा देवकुंड महोत्सव का सफल बनाने के लिए धन्यवाद करते हैं. इस अवसर पर उपस्थित रहे सर्वश्री सांसद महाबली सिंह, विधायक भीम कुमार सिंह, S.D.O मनोज कुमार, D.S.P ऋषि राज, B.D.O राकेश कुमार, प्रखण्ड प्रमुख, जिला परिषद सदस्य, मुखिया, सरपंच, सभी दलों के नेताओं, जनता जनार्दन का समूह। देवकुंड महोत्सव सफल आयोजन रहा।
औरंगाबाद जिला के पर्यटन के प्रमुख स्थलों में से एक है देवकुंड, जो अपने ऐतिहासिक मूल्य के लिए विख्यात है। देवकुंड में भगवान दुधेश्वरनाथ को समर्पित एक प्राचीन मंदिर भी है। जब च्यवन ऋषि को कुष्ठ रोग हुआ तो यहाँ उनकी पत्नी सुकन्या ने देवकुंड में भगवान सूर्य की आराधना की थी। यहीं भगवान दुधेश्वरनाथ शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर भी है जिसके समीप च्यवन ऋषि द्वारा निर्मित एक पवित्र सरोवर है। आस पास के क्षेत्र में बढ़िया उर्वर जमीन है अतः खेती खूब होती है। यहाँ आने जाने के लिए सभी दिशा से सुविधा उपलब्ध है।
महर्षि च्यवन की तपोभूमि देवकुंड में कुण्ड की अग्नि पांच सौ साल से अधिक समय से प्रज्ज्वलित है। अरवल और औरंगाबाद की सीमा पर स्थित देवकुंड वह धरती है जहां भगवान श्री राम गया में अपने पितरों को पिण्डदान करने से पूर्व ही भगवान शिव की स्थापना कर पूजा अर्चना की थी। बाद में महर्षि च्यवन ने उसी स्थल को अपनी तपोभूमि बनाया और वषरे तपस्या की। पांच सौ वर्ष पूर्व बाबा बालपुरी ने च्यवन ऋषि के उसी आश्रम में साधना की और हवन करने के बाद जिन्दा समाधी ले ली। तब से उस कुण्ड की अग्नि आज तक प्रज्ज्वलित है। ऐसा भी नहीं कि उस कुण्ड में प्रतिदिन हवन होता है। इक्के-दुक्के आने-जाने वाले लोग ही उस कुण्ड में धूप डालते हैं या फिर किसी विशेष अवसर पर वहां हवन आयोजित होता है किन्तु कुण्ड की अग्नि पांच सौ वर्ष से कभी नहीं बुझी। ऊपर से देखने पर कुण्ड राख का ढेर लगता हैं किन्तु राख में थोड़ा सा भी हाथ डालने पर उसके नीचे अग्नि का एहसास होता है। कुण्ड में धूप डाल कर पास रखे छड़ से जैसे ही राख को उड़ेला जाता है उसकी अग्नि धूप को पकड़ लेती है और कुण्ड से धूंआ निकलना शुरू हो जाता है। कुण्ड के बगल में ही महर्षि च्यवन की प्रतिमा स्थापित है और बगल में बाबा बालदेव का वह आसन रखा है जिस पर बैठकर उन्होंने साधना की थी। कुण्ड के सामने बाबा बालपुरी की समधी स्थल पर छोटे-छोटे दस शिवलिंग स्थापित हैं। बाबा दुधेश्वरनाथ के नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव का मंदिर कुण्ड से कुछ दूरी पर सहस्त्रधारी  के किनारे हैं जहां पहले भगवान श्री राम और बाद में च्यवन ऋषि ने पूजा अर्चना की थी। मंदिर के पुजारी अखिलेश्वरानंद पुरी , फिल्हाल कन्हैया नंद पूरी, एवं देवकुण्ड स्थित रामध्यान दास महाविद्यालय के प्राचार्य योगेन्द्र उपाध्याय बताते हैं कि महर्षि चवन जब यहां तपस्या में लीन थे तो उस समय वहां के राजा शरमाती और उनकी पुत्री सुकन्या जंगल में भ्रमण के लिए आए थे। सुकन्या एक टीले के बीच चमकती रोशनी देखकर उसमें कुश डाल दी। गड्ढा दरअसल वह तपस्या में लीन महर्षि च्यवन थे जिनकी आंखे सुकन्या के कुश डाले जाने के कारण फूट गई। महर्षि के श्राप से बचने के लिए राजा ने सुकन्या से महर्षि चवन की शादी कर दी। महर्षि च्यवन से नवयौवन सुकन्या की विवाह के बाद अश्विनी कुमारों ने यज्ञ कर महर्षि च्यवन को उसी सहस्त्रधारा में स्नान कराया और विशेष रसायन तथा सोमरस का पान कराया जिसके बाद महर्षि च्यवन को यौवन प्राप्त हुआ वही रसायन बाद में च्यवनप्राश के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

सावन के महीने में लोग दूर -दूर से भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं और हवन कुण्ड में धूप अर्पित करते हैं। कार्तिक मास में सहस्त्रधारा में बड़े पैमाने पर छठ पर्व आयोजित किया जाता है।यहाँ का सहस्त्र धारा कुंड में स्नान करने का बहुत महत्ता है। सालों भर भक्तो का आना जाना जारी रहता है और ये क्षेत्र एक बढ़िया पर्यटन के रूप में धीरे धीरे विकसित हो रहा है।
बिहार सरकार द्वारा देवकुंड महोत्सव की शुरूआत किया गया है। वर्तमान विधायक भीम कुमार सिंह ने इसके लिए बिहार विधान सभा में आवाज उठाने का काम किये और सरकार द्वारा मांग स्वीकार किया गया। देवकुंड महोत्सव को राजकीय महोत्सव घोषित किया गया है और इस साल से ये मनाया जा रहा है। देवकुंड क्षेत्र में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध है, हालांकि सड़क, सुरक्षा और व्यापार के विकास की बहुत संभावना है, पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होने के लिए स्थानीय लोगों का सहयोग, सुरक्षा हेतु उपाय और प्रशासन का तत्परता बहुत जरूरी है। केंद्रीय विद्यालय के लिए भी यहाँ पर प्रक्रिया चल रहा है। देवकुंड महोत्सव को और प्रचार प्रसार और बढ़ावा देने के लिए सभी मोर्चो पर काम करने की जरूरत है। सरकार को भी फंड उपलब्ध कराने की जरूरत है, नही तो ये सब धरा का धरा रह जायेगा। स्थानीय सांसद, विधायक, मुखिया, समिति, वार्ड, जनता और साथ ही प्रशासन की सम्मिलित जिम्मेदारी से ये क्षेत्र एक विकसित पर्यटन स्थल बन सकता है, पूरी संभावना है.

औरंगाबाद जिले में देवकुंड , भृगुरारी धाम, अमझर शरीफ़ और सिहुली दरगाह को पुरातत्व विभाग से तीर्थ स्थल घोषित करने की मांग बहुत समय से चल रहा है और यदि ये मांग पूरा किया गया तो हमारा जिला एक बेहतर पर्यटन जिला बन सकता है
केंद्रीय विद्यालय के साथ अन्य शैक्षणिक संस्थान, केंद्र खोला जा सकता है और इसके लिए बहुत जमीन भी उपलब्ध है। धर्म शिक्षा पर्यटन अध्यात्म और विकास की नई दिशा दे सकता है देवकुंड धाम। 

निज सुचनार्थ -(बादल कुमार ग्राम फाग
जिला औरंगाबाद बिहार से)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!