पहला दौर के हुए कम मतदान से भाजपा के लिए खतरे की घंटी,ज्यादातर घरो में रहे दुबके कुछ समुदाय के लोग।

एटीएच न्यूज 11 ग्रुप ऑफ मीडिया:-राजस्थान में शुक्रवार को हुए पहले चरण के लोकसभा चुनाव में 12 सीटों पर 2019 की तुलना में छह फीसदी कम हुए मतदान को लेकर राजनीतिक दल और पर्यवेक्षक चाहे जो अनुमान- कयास लगाते रहे,लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि कम मतदान लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए आधिकाधिक मतदान जरूरी है,ताकि चुने गए जनप्रतिनिधियों और सरकार में व्यापक जनभागीदारी नजर आए। लेकिन मतदान के प्रति मतदाताओं की उदासीनता ने यह जाहिर कर दिया है कि राजनीतिक दलों और नेताओं की विश्वसनीयता अब धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। इस कारण लोग भी वोट डालने के प्रति उदासीन हो रहे हैं।

पहले दौर की कम वोटिंग ने राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की नींद जरूर उड़ा दी है,जो मिशन 25 की हैट्रिक लगाने के लिए बेताब नजर आ रही थी। लेकिन अब उसे मतदान के दूसरे दौर से पहले यह चिंतन करना पड़ेगा कि आखिर क्यों उसका कोर वोटर और उन्हें मतदान केन्द्र तक लाने वाले कार्यकर्ता और आरएसएस का कैडर सक्रिय नहीं रहा? लगभग सभी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में ये बात समान रूप से नजर आई है कि भाजपा कार्यकर्ताओं ने वोट डलाने के लिए हर बार की तरह की जाने वाली मेहनत नहीं की और पार्टी की बदलती चाल, चरित्र और चेहरे के कारण भाजपा का कोर वोटर भी इतना निराश-हताश रहा कि उसने भी वोटिंग से दूरी बनाए रखी। राजस्थान में वरिष्ठ और लोकप्रिय भाजपा नेताओं की उपेक्षा और उन्हें साइड लाइन करने की कोशिश भी उनके समर्थकों और आम कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं आई। इनका मानना है कि नया नेतृत्व पार्टी को आगे लाना चाहिए। लेकिन अनुभव और वरिष्ठता का भी सम्मान होना चाहिए। जिस तरह राजस्थान में वसुंधरा राजे सहित कई वरिष्ठ नेताओं को एकदम से मुख्यधारा से बाहर कर दिया,उससे बाकी नेताओं और कार्यकर्ताओं में संदेश गया कि पार्टी में वरिष्ठता,समर्पण और मेहनत की कोई कीमत नहीं रही है।
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया,पूर्व नेता प्रतिपक्ष पक्ष राजेंद्र राठौड़ ,अरुण चतुर्वेदी सहित कई ऐसे नेता है जिन्हें उपेक्षित रखा गया है। भाजपा ने कांग्रेस से आई ज्योति मिर्धा को विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी नागौर से लोकसभा का टिकट दे दिया। इसी तरह विस चुनाव में किशनगढ़ में तीसरे स्थान पर रहे भागीरथ जोशी को फिर अजमेर से टिकट दे दिया। लेकिन पूनिया और राठौड़ को विधानसभा चुनाव में हार के बाद किनारे लगा दिया,जबकि ये दोनों ही लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। विधानसभा चुनावों के बाद मंत्रिमंडल गठन में भी वरिष्ठ विधायकों को दरकिनार किया गया था। जबकि भाजपा के कोर वोटर में पार्टी में प्रवेश कर गए परिवारवाद,दलबदलूओं की कद्र और बड़े भ्रष्टाचारी नेताओं को पार्टी में लेकर संरक्षण देने के कारण निराशा और नाराजगी है। उन्हें लगता है कि अब यह पार्टी विद डिफरेंस नहीं रहकर दूसरे राजनीतिक दलों की तरह हो गई है। जो सत्ता में आने के लिए समझौते करने लगी है।
वरिष्ठों और पार्टी नेताओं को ठंडे बस्ते में डालने की इस धारणा को देशभर सहित राजस्थान में कांग्रेस के नेताओं के भर्ती अभियान ने और मजबूत किया। विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव तक जिस तरह राजस्थान में पार्टी ने कांग्रेसियों की भर्ती के लिए अपने दरवाजे खोल दिए, उससे भाजपा नेता और कार्यकर्ता भीतर ही भीतर खुद को असहज महसूस कर रहे थे। पार्टी ने कांग्रेस छोड़कर आए नेताओं को टिकट भी दिए। जो सालों से अपने क्षेत्र में मेहनत कर रहे भाजपा नेताओं के मुंह पर तमाचे जैसा था। भाजपा में शायद ऐसा पहली बार हुआ हो जब उसके नेताओं ने कांग्रेस के नेताओं की तरह चुनाव में काम करने की मुंह दिखाई तो खूब की,लेकिन भीतर ही भीतर वह नाराज रहे और इसीलिए उन्होंने मतदान बढ़ाने में कोई भागीदारी नहीं निभाई। जबकि भाजपा ने हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने का नारा दिया था। चुनाव परिणाम ये बताएंगे कि कितने बूथों पर इसका असर दिखा। जबकि भाजपा के लिए कहा जाता है कि उसका बूथ स्तर के कार्यकर्ता और संघ के स्वयंसेवक चुनाव के दिन मतदाताओं को बूथ तक लाने के लिए जान लड़ा लेते हैं। लेकिन कल ऐसा नजारा शायद ही कहीं नजर आया। वोट डालने आए मतदाता भी जातिवाद को लेकर ज्यादा उत्साहित औय सजग थे। कांग्रेस ने इस बार अपने उम्मीदवारों के चयन में भाजपा के जातिगत समीकरणों को बिखेर दिया है.
राजस्थान के पिछले दो लोकसभा चुनाव गवाह है कि है यहां मतदान प्रतिशत बढ़ा है,तब भाजपा सभी सीटें जीतने में कामयाब रही। 2014 में यह 2009 के मुकाबले 13% और 2019 में 14 के मुकाबले दो प्रतिशत बढ़ा था और भाजपा 25 की 25 सीटें जीती थी। लेकिन अब पहले दौर में ही 6 प्रतिशत घटने से कहानी में बदलाव की आशंका उत्पन्न हो गई है। मतदान प्रतिशत घटने से भाजपा को एक चिंता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पूरी तरह से अपने निर्भरता को लेकर भी हो रही होगी। जिन 12 सीटों पर मतदान हुआ है, वहां उम्मीदवारों ने अपने प्रचार में मोदी का चेहरा आगे रखकर ही वोट मांगे थे। इसमें कोई शक भी नहीं कि आज भी मोदी देश में प्रधानमंत्री पद की पहली पसंद है और एक सर्वे के मुताबिक देश के 55 प्रतिशत लोग उन्हें वापस प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं। लेकिन इसका आशय यह बिल्कुल नहीं है कि मतदाता अपनी उम्मीदवारों के बारे में बिल्कुल भी ना सोचे।
पहले चरण में कम मतदान ने कांग्रेस में जरूर उम्मीद जगा दी है। मतदान से पहले भी विश्लेषक मान रहे थे कि राजस्थान में भाजपा किसी भी कीमत पर तीसरी बार 25 सीटें नहीं जीत सकती है और इंडिया अलायंस 4 से 5 सीटें निकाल सकता है। ऐसे में कल मतदान के बाद तो यह संभावना है और बढ़ गई है। अब तो यह माना जाने लगा है कि 25 में से आधी सीटों पर मुकाबला कांटे का हो सकता है और नतीजे अप्रत्याशित भी आ सकते हैं। कांग्रेस के पास वैसे भी खोने के लिए कुछ नहीं है। लगातार दो बार से वह शून्य पर है और इस बार तय माना जा रहा है कि उसका खाता जरूर खुलेगा। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!