एटीएच न्यूज़ 11 पर चली खबर का दिखा असर ,उपायुक्त गढ़वा के निर्देशानुसार जांच कमेटी पहुंची घटना स्थलपर। 

 गढ़वा ब्यूरो चीफ डॉ श्रवण कुमार की रिपोर्ट।

 

झारखंड:- गढ़वा जिले के कांडी प्रखंड अंतर्गत दिनांक 17/03/2024 दिन रविवार झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के आदेश पर प्रखंड क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सरकारी दवा फेंक दिए जाने के मामले की जांच की गई। जिला के उपायुक्त द्वारा गठित जांच कमेटी की देर शाम दवाओं की जांच करने के लिए कांडी थाना पहुंची। जहां जब्त दवाओं की विस्तार से जांच की गई। जांच रिपोर्ट उपायुक्त को सौंप दी गई है। जहां से इसे सूबे के वजीरे सेहत बन्ना गुप्ता को भेजा जाएगा। मालूम हो कि शनिवार की अहले सुबह मीडिया द्वारा प्राप्त सूचना के आधार पर प्रसिद्ध पर्यटन स्थल सतबहिनी झरना से दक्षिण बड़े गड्ढे एवं गड्ढे से बाहर एक ट्रैक्टर से अधिक सरकारी दवाएं फेंकी हुई पुलिस ने बरामद की हैं। इन दवाओं में बड़े पैमाने पर आयरन की गोली फोलीक एसीड एवं कृमि नाशक कीड़े की दवा एल्बेंडाजोल पाई गई है। कांडी थाना प्रभारी गुलशन कुमार गौतम के नेतृत्व में पुलिस जप्त दवाओं को थाना ले गई। इस मामले को लेकर पुलिस के उच्च पदाधिकारी के निर्देशानुसार सनहा संख्या 10/2024 दिनांक 16 मार्च 2024 दर्ज कर ली गई। जांच टीम में शामिल गढ़वा जिला के मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी सह सिविल सर्जन डॉक्टर अशोक कुमार ने बताया कि इस बैच नंबर की दवाएं फेंकी गई है वह मझिआंव की नहीं हैं। इतनी बड़ी संख्या में दवाएं जिले की किसी भी फैसिलिटी सेंटर की नहीं हो सकती। कहा कि इस बैच नंबर की दवाओं का सप्लाई नहीं किया गया है। विशेष रूप से उन्होंने बताया कि गुलाबी एवं नीले रंग की दावों की आपूर्ति सीधे राज्य से की जाती है। जो बच्चों को देने के लिए बीआरसी में भेजी जाती है। अभी हाल में फाइलेरिया की दवा के साथ कीड़े की दवा देने का जो अभियान चला था। उसकी दवा डिब्बे में थी। लेकिन यहां पर जप्त दवाएं स्ट्रिप में हैं। इसमें केवल गुलाबी रंग की एक तरह की गोली यहां की है। वह मझिआंव या किसी अन्य जगह से सप्लाई की गई है इसका पता करना होगा। उन्होंने कहा कि केवल आयरन की गोली फोलीक एसीड डेढ़ लाख की मात्रा में है। जबकि एल्बेंडाजोल की गोली 16000 है। दोनों दवाओं की कीमत की बात करें तो यह दवाएं न्यूनतम चार लाख रुपए की बताई जा रही हैं। हालांकि विश्वस्त सूत्रों की माने तो एल्बेंडाजोल की संख्या 23 हजार है। इस हालत में दवाओं का मूल्य और 63 हजार रुपए बढ़ जाएगा। सिविल सर्जन ने कहा कि यह जप्त दवाओं का स्टोरेज ढंग से नहीं किया गया था। जिससे दवाओं को अच्छी हालत में नहीं पाया गया है। मार्के की बात यह है कि दवाओं के साथ कुछ रंगीन फोटोग्राफ्स पाए गए हैं। जो कांडी प्रखंड क्षेत्र के एक विद्यालय में संपन्न कार्यक्रम के हैं। जब दवा की आपूर्ति का सही पता नहीं चल रहा है। इन दवाओं को जिला मुख्यालय गढ़वा सहित मझिआंव से आपूर्ति किया हुआ नहीं बताया जा रहा है तो इन तस्वीरों को बरगलाने के लिए रखा गया बताया जा रहा है। जांच टीम में सिविल सर्जन डॉक्टर अशोक कुमार के साथ जिला के भू राजस्व उप समाहर्ता रवीश राज सहित कई स्वास्थ्य कर्मी शामिल थे। इस तरह से बड़े पैमाने पर सरकारी दवाओं का फेंका जाना पूरे इलाके सहित मीडिया में खबर आ जाने के बाद पूरे जिले में काफी चर्चा का विषय बन गया है। लोग इसकी काफी भर्त्सना कर रहे हैं। विभागीय सूत्रों की मानें तो पिछले महीने चले अभियान के दौरान फाइलेरिया एवं कीड़े की दवा सहिया को दी गई थी। जिसे प्रत्येक घर में जाकर खिलाना था। यदि कोई कहता है कि मुझे दवा दे दीजिए मैं बाद में खा लूंगा उस हाल में भी दवा किसी पब्लिक को नहीं देने का सख्त आदेश था। और किसी भी सहिया को बड़े पैमाने पर दवाएं नहीं दी गई थीं। यहां हालात है कि एक ट्रैक्टर जब्त सही डेटवाली दवाओं के अलावा आधा दर्जन बोड़ों में भरकर एक्सपायर दवाएं पुलिस द्वारा ले जाई गईं थीं। लोगों ने कहा कि सरकारी दवाएं साधन हीन गरीब मरीजों का सहारा होती हैं। इस तरह की दवाएं फेंक कर गरीबों के भरोसे पर कुठाराघात किया गया है। लाख टके का सवाल यह है कि स्वास्थ्य विभाग सिरे से पल्ला झाड़ रहा है कि यह हमारे यहां से आपूर्ति की गई दवाएं नहीं है तो सवाल उठता है कि कितने दूर के स्वास्थ्य कर्मियों ने कांडी प्रखंड क्षेत्र में आकर दवाएं फेंक कर चले गए। दूसरे जिले के लोगों के द्वारा आकर यहां दवा फेंक जाने की कोई संभावना नहीं है। क्योंकि सड़क के किनारे इस निर्जन स्थान की जानकारी अन्यत्र रहने वाले लोगों को नहीं हो सकती। विभाग की आशंका की सूई बार-बार बीआरसी पर जाकर ठहर रही है। अब यहां सवाल उठता है कि इस दृष्टिकोण से इस मामले की जांच की जाए कि किस कार्यालय से किस-किस बीआरसी को कितनी दवाएं भेजी गई और उनके द्वारा किस स्कूल में कितनी दवाओं की आपूर्ति की गई। जांच किए बिना मामले के जड़ तक पहुंचना मुश्किल है। निष्पक्ष एजेंसी द्वारा इस गंभीर मामले की गहन जांच नहीं की जाएगी तो अन्य मामलों की तरह यह मामला भी दाखिल दफ्तर करके फाइल को बंद कर दिया जाएगा।

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