सासाराम:-शहर में दस मुहर्रम के अवसर पर विभिन्न मोहल्लों से ताजिया निकली, जो लगभग चौखंडी, मंडई, गांधीनीम, शाहजुमा, शेरगंज, लश्करीगंज, बस्ती मोड़, मोची टोला, जानी आजार, नवरतन बाजार, मदार दरवाजा, चौक बाजार, आलमगंज, बागभाई खां आदि अलग-अलग मार्गों से होते हुए अपने-अपने मुहल्ले में वापस इमाम चौक पर आ गईं. जहां इधर मोहल्ला शाहजुमापीर की ताजिया के इमाम चौक छोड़ते ही वहां के दो नाल साहेब भी गश्त पर निकल गए. इधर, मोहल्ला नीम काले खां और शाहजलालपीर की ताजिया ने जैसे ही इमाम चौक छोड़ा यहां के नाल साहेब भी गश्त पर निकल गए. उक्त ताजिया अपने अपने निर्धारित मार्गों से गुजरी, तो मोहल्ला बाड़ा शेरगंज में मोहल्ला शाहजुमापीर (सदर) व मोहल्ला नीम काले खां की ताजिया के बीच शानदार मिलाप हुआ, जिसे देखने शहर ही नहीं बल्कि शहर के आस-पास के लोग जुटे थे. नसीम, कमरू, रिजवान, शकील आदि लोगों ने बताया कि यह रिवायती मिलाप है. हर वर्ष दस मुहर्रम को शाहजुमापीर व नीम काले खां के बीच मोहल्ला बाड़ा शेरगंज नीम के पास मिलाप होता है. वहीं ग्यारह मुहर्रम पहलाम के दिन मोहल्ला जानी बाजार में मिलाप का रिवायत है. इसे देखने के लिए दूर-दूर से अकीदतमंद आते हैं. उनलोगों ने बताया कि शहर बहुत कदीम (पुराना) है. यहां ताजिया उठाने की कदीम रिवायत रही है. नाल साहेब के बारे में बताया कि जब नाल साहेब गश्त पर निकलते हैं तो इनके साथ काफी अकीदतमंद जुड़ते हैं और दरूद व कुरान की तिलावत करते हैं. एक 80 वर्षीय बुजुर्ग अकीदतमंद शम्स ने बताया कि जब मैं बच्चा था और मेरे पापा मुझे मुहर्रम दिखाते थे और वह बताते थे कि उनके दादा ने उन्हें मुहर्रम की ताजिया दिखाई थी. तो सोच सकते हैं कि यह कितनी पुरानी रिवायत है. इधर, नौ व दस मुहर्रम को शहर के विभिन्न जगहों पर कुरानखानी व लंगर का इंतजाम किया गया था. लोग जगह जगह शरबत, खिचड़ा आदि का लंगर चला रहे थे.